पांडव वंश का इतिहास। Pandava Vansh ka itihaas in Hindi
पांडव वंश का इतिहास। Pandava Vansh ka itihaas in Hindi। History of Pandava Dynasty in Hindi
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Pandava Vansh ka Itihaas - आज मे आपको इस लेख मे महाभारत मे पांडव वंश की वंशावली के बारे मे बतायुंगा। जैसा की महाकाव्य महाभारत मे लिखा हुआ है।
पुरु वंश की वंशावली की वर्णन। पांडव वंश की वंशावली । पांडव वंश का इतिहास।
महाभारत मे इस वंशावली के बारे मे जनमेजय ने वैशम्पयान जी से पूछा था। फिर उन्होंने कहाँ सुनो जनमेजय : -
पांडव वंश की वंशावली । पांडव वंश का इतिहास।
दक्ष से अदिति और अदिति से विवस्वान, विवस्वान से मनु, मनु से इला, इला से पुरुरवा हुए, पुरुरवा से आयु, और आयु से नहुष हुए, नहुष से यायति हुए। यायति की दो पत्नियाँ थी। देवयानी और शर्मिष्ठा। देवयानी के दो पुत्र थे। जिनका नाम यदु और तुर्वसु था। और शर्मिष्ठा के तीन पुत्र थे। दृष्ठ, अनु और पुरु।
यदु से यादव हुए और पुरु से पौरव। पुरु की पत्नी का नाम कौशल्या था। जिनसे जनमेजय का जन्म हुआ। जिन्होंने अपने जीवन मे तीन अश्वमेध यज्ञ और एकी विश्वजित यज्ञ भी किया था। इनकी पत्नी का नाम अनन्ता था इनसे प्रचिन्वान हुए। प्रचिन्वान की पत्नी का नाम अश्मकी था। जिनसे संयाति हुए। संयाति के पत्नी का नाम वराङ्गी था, जिनसे अहंयाति का जन्म हुआ।
पांडव वंश की वंशावली । पांडव वंश का इतिहास।
अहंयाति की पत्नी का नाम भानुमती इन से सार्वभौम नामक पुत्र ने जन्म लिया। सार्वभौम के पत्नी सुनंदा से जयत्सेन ने जन्म लिया। जयत्सेन की पत्नी सुश्रुवा से अवाचीन हुए। अवाचीन की पत्नी मर्यादा से अरिह हुए। अरिह की पत्नी सुदेवा से ऋक्ष नाम के पुत्र ने जन्म लिया। ऋक्ष की पत्नी ज्वाला से मतिनार ने जन्म लिया।
उन्होंने सरस्वती के तट पर बारह वर्ष तक सभी तरह से संपन्न यज्ञ किया । यज्ञ खत्म होने पर सरस्वती ने उनसे विवाह किया, फिर उनसे तन्सु ने जन्म लिया। तन्सु के पत्नी कलिंगी के गर्भ से ईलीन ने जन्म लिया । ईलिन की पत्नी रथन्तरी से दुष्यंत को मिलाकर पाँच पुत्रो हुए। पाँच पुत्रो मे से दुष्यंत की पत्नी शकुंतला से भरत हुए। भरत की पत्नी सुनंदा से भूमन्यु हुए। भूमन्यु की पत्नी विजया से सूहोत्र ने जन्म लिया।
और सूहोत्र की पत्नी सुवर्णा से हस्ती का जन्म हुआ। राजा हस्ती ने ही हस्तिनापुर को बसाया था। हस्ती की पत्नी यशोधरा से विकुण्ठन हुए और इनकी पत्नी सुदेवा से अजमीढ़ हुए। और अज़मीढ की भार्या से अलग अलग पत्नियों से एक सौ चौबीस पुत्र हुए। ये सभी अलग अलग वंशों के प्रवर्तक हुए। इन्ही मे से भरत वंश के प्रवर्तक का नाम संवरण हुए। और संवरण की पत्नी तपती से कुरु का जन्म हुआ था।
कुरु की पत्नी शुभाङ्गि से विधुरथ हुए। और विधुरथ की पत्नी संप्रिया से अनश्ववा ने जन्म लिया। अनश्ववा की पत्नी अमृता से परीक्षित हुए।
परीक्षित की पत्नी सुयशा से भीमसेन हुए। भीमसेन की पत्नी से प्रतिश्रवा हुए और इनके पुत्र का नाम प्रतिप हुआ। प्रतिप की पत्नी के तीन पुत्र हुए जिनके नाम , देवापि, शान्तनु और बाल्हिक । जिनमे से देवापि बचपन मे ही तपस्या के लिए चले गए थे।
शान्तनु राजा बने उनके बारे मे ऐसा कहा जाता है की वो जिसे भी छु लेते थे वो जवान और सुखी हो जाता था। इसी वजह से उनका नाम शांतनु पड़ा। शान्तनु का विवाह गंगा से हुआ। जिनसे देवव्रत का जन्म हुआ । जिन्हे संसार मे भीष्म के नाम से जाना जाता है। भीष्म जी ने अपने पिता की खुशी के लिए उनका विवाह सत्यवती से करवा दिया था।
जिनसे विचित्रवीर्य और चित्रांगद नाम के दो पुत्र हुए। चित्रांगद बचपन मे ही गंधर्वों के साथ युद्ध मे मारे गए। विचित्र वीर्य राजा बने उनकी दो पत्नियाँ थी अम्बिका और अंबालिका लेकिन इनकी संतान होने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। उनकी माता सत्यवती ने सोचा की अब राजा दुष्यंत का वंश आगे कैसे बड़ेगा। फिर उन्होंने व्यास जी को बुलाया।
पांडव वंश की वंशावली । पांडव वंश का इतिहास।
व्यास जी के आने के बाद उन्होंने व्यास जी से कहा की तुम्हारा भाई विचित्रवीर्य संतानहीन ही मर गया है। तुम उसके वंश की रक्षा करो , व्यास जी ने माता सत्यवती के आज्ञा को स्वीकार किया। जिसके बाद अम्बिका से धृतराष्ट्र और अंबालिका से पांडु और उनकी दासी से विदुर को उत्पन्न किया।
व्यास जी के वरदान से धृतराष्ट्र के सौ पुत्रो का जन्म हुआ जिनमे चार पुत्र प्रधान हुए - दुर्योधन, दु:शासन , विकर्ण और चित्रसेन। पांडु की पत्नी कुंती से तीन पुत्र हुए - युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन। और उनकी दूसरी पत्नी माद्री से दो पुत्र हुए - नकुल और सहदेव।
द्रुपद राज कन्या द्रोपती से पाचों पांडव का विवाह हुआ जिनसे - प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानिक और श्रुत कर्मा का जन्म हुआ। युधिष्ठिर की एक पत्नी और थी जिनका नाम देविका था जिनसे बौधेय ने जन्म लिया। और भीमसेन का विवाह काशिराज की कन्या बलंधरा से हुआ जिनसे सर्वग ने जन्म लिया।
अर्जुन का विवाह भगवान श्री कृष्ण की बहिन शुभद्रा से हुआ जिनसे अभिमन्यु ने जन्म लिया।और नकुल की पत्नी करेणुमति से निर्मित्र हुए। और सहदेव की पत्नी विजया से सूहोत्र ने जन्म लिया। भीमसेन का विवाह इससे पहले हिडिंबा से हो चुका था जिनसे घटोत्कच नाम के पुत्र ने जन्म ले लिया था। ऐसे पांडवों के ग्यारह पुत्र हुए।
पांडव वंश की वंशावली । पांडव वंश का इतिहास।
लेकिन वंश का आगे बढ़ना तो अभिमन्यु से ही हुआ। इनके अलावा अर्जुन के दो पुत्र और थे, उलुपि से इडावान् और चित्रांगदा से बभ्रु वाहन नाम का पुत्र हुआ। ये दोनों अपनी - अपनी माता के साथ ही रहे जो बाद मे उन्ही के उत्तराधिकारी बने। अभिमन्यु का विवाह विराट राजकुमारी उत्तरा से हुआ, जिनसे मृत बच्चे का जन्म हुआ। जिसे भगवान श्री कृष्ण ने जीवित किया था।
कुरुवंश के परिक्षिण होने से उस बालक का जन्म हुआ जिससे उसका नाम परीक्षीत हुआ। और इनकी पत्नी मद्रवती से जनमेजय हुए और इनके बहुष्ठमा नाम की पत्नी से दो पुत्र हुए। जिनके नाम शतानिक और शंकुकर्ण थे। शतानिक के भी एक पुत्र हुए जिनका नाम अश्वमेधदत्त हुआ। अश्वमेधदत्त तक ही इनके वंश का वर्णन महाभारत मे मिलता है।
इस प्रकार मैने आपको इस लेख के माध्यम से पांडवो के वंश के बारे मे बताया है जैसा की महाभारत महाकाव्य मे लिखा हैं। अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो मुझे कमेंट मे जरूर बताये।
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